सोमवार, 15 जुलाई 2019

         

बोल बम : फिर आया बाबा का बुलावा, जानें देवघर, बासुकिनाथ और अजगैबीनाथ का महत्‍व.

 

इस बार विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेले व बांग्ला सावन की शुरुआत 17 जुलाई से हो रही है. एक महीना तक बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर व सुलतानगंज के बीच केसरिया वस्त्रधारी कांवरियों की मानव शृंखला बनी रहेगी. सुलतानगंज (भागलपुर) की उत्तरवाहिनी गंगा से जल भर कर ज्योतिर्लिंग बैद्यनाथ के मंदिर तक की यह कांवर-यात्रा अपने आप में अनूठी है. 
 
आस्था व विश्वास का ऐसा संगम दुनिया में कहीं और दिखाई नहीं देता है. यही कारण है कि देवघर का श्रावणी मेला विश्वविख्यात हो गया है. मेले के सफल संचालन को लेकर झारखंड व बिहार की सरकारें कमर कस चुकी हैं.  कांवरियों की सुविधा के लिए अच्छी व्यवस्था की गयी है. आइए जानते हैं िक अजगैबीनाथ, बैद्यनाथ व बासुकिनाथ के माहात्म्य और इस बार की सुविधाओं के विषय में. 
 
महत्व

अजगैबीनाथ में होती है स्वयंभू शिवलिंग की पूजा
 
भागलपुर से 26 किलोमीटर पश्चिम में सुल्तानगंज में उत्तरवाहिनी गंगा की पावन गोद में ग्रेनाइट पत्थर के विशाल चट्टान पर अजगैबीनाथ महादेव का मंदिर अवस्थित है. कहते हैं, जब भगीरथ के प्रयास से गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुईं, तब उनका वेग अत्यंत तीव्र था. 
उसे रोकने के लिए भगवान शिव यहीं प्रकट हुए थे और अपनी जटा में गंगा को समेट लिया था. देवताओं की प्रार्थना पर शिव ने गंगा को अपनी जंघा के नीचे बहने का मार्ग दिया. इस कारण सुल्तानगंज में ही गंगा उत्तरवाहिनी हैं. यहां का शिवलिंग स्वयंभू है. 
 
आपरूप उत्पन्न होने से शिव 'अजगवी' कहलाये. इसी नाम पर अजगैबीनाथ मंदिर है. मान्यता है कि आज भी देवघर के बाबा बैद्यनाथ प्रति दिन सांध्य आरती के समय यहां उपस्थित होते हैं और फिर अपने धाम, देवघर, लौट जाते हैं. इसलिए अजगैबीनाथ मंदिर और बैद्यनाथ मंदिर में आरती के समय में एक घंटे का समयांतराल रखा गया है. 
 
बाबा बैद्यनाथ को उत्तरवाहिनी गंगा के जल का एक बूंद भी अत्यंत प्रिय है. इसलिए, शिवभक्त यहां से गंगाजल लेकर बैद्यनाथधाम तक की कांवर-यात्रा करते हैं. इससे पहले बाबा अजगैबीनाथ की पूजा निश्चित रूप से करते हैं. सुल्तानगंज कभी बौद्धों का भी तीर्थस्थल था.
 
महत्व

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में नवम् हैं देवघर के बाबा वैद्यनाथ
 
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को द्वादश  ज्योतिर्लिंगों में नवम् माना जाता है. वैद्यनाथ नाम से शिव की प्रशस्ति के कारण ही इन्हें इस नाम से संबोधित किया जाता है. वैद्यनाथ महात्म्य के अनुसार, 
 
वैद्यम्यां पूजित सत्यं लिंग मेत्पुरामम् ।
वैद्यनाथ इति ख्यातं र्सवकामप्रदायकम्।।
 
प्राचीन  काल में इस लिंग की उपासना वैद्यों ने की थी. इसलिए सर्वकामप्रद इस लिंग की प्रसिद्धि हुई. शिव रहस्य के पंचमांश में द्वादश ज्योतिर्लिंग माहात्म्य है. इसमें वैद्यनाथ की महिमा का वर्णन मिलता है.
 
लोग सांसारिक बंधन से छूटने के लिए इस लिंग का पूजन करते हैं. जो मनुष्य एक बार भी विल्वपत्र से पूजन कर लिंग का दर्शन करता है, वह मुक्ति को प्राप्त करता है. शिव की पूजा एक भील कर रहा था. शिव उसकी  पूजा से प्रसन्न हो गये. उसे दूसरे जन्म में वैद्यनाथ नामार्थ में वैद्य नाम से जन्म लेने का वरदान मिला. शिवपुराण में वर्णन है कि रावण जब शिव को लेकर कैलाश से लंका की ओर जा रहा था, तो मूत्र विसर्जन के क्रम में उसने ब्राह्मण वेशधारी विष्णु के हाथ में लिंग विग्रह को समर्पित किया था. विष्णु द्वारा अचल रूप  में लिंग यहां प्रतिष्ठित हुआ. शिव को प्रसन्न करने के क्रम में रावण अपने दशग्रीव को काट कर समर्पित किया था. शिव ने अमोघ दृष्टि से सभी सिरों को पुन: जोड़ दिया था. इसलिए भी इनका नाम वैद्यनाथ पड़ा.     
     
डॉ मोहनानंद मिश्र 

महत्व

फौजदारी कोर्ट की तरह शीघ्र सुनते हैं बासुकिनाथ
 
बाबा बासुकिनाथ को फौजदारी बाबा कहा जाता है. मान्यता है कि देवघर के बाबा वैद्यनाथ का दरबार दीवानी अदालत की तरह है, जहां भक्तों की मुराद पूरी तो होती है, किंतु सुनवाई में 'दीवानी मुकदमों' की तरह देरी होती है, जबकि बाबा बासुकिनाथ के दरबार में 'फौजदारी मुकदमों' की तरह फैसले जल्द होते हैं. अत: शिवभक्तों का विश्वास है कि बाबा बासुकिनाथ के दरबार में मांगी गयीं मन्नतंें जल्द पूरी हो जाती हैं. 
इसलिए बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक और पूजन करने के बाद कांवरिया और अन्य शिवभक्त बासुिकनाथ आ कर ही अपनी पूजा को पूर्ण मानते हैं. शीघ्र कृपा पाने की कामना में लाखों कांवरिया और डाक कांवरिया भागलपुर से गंगाजल लेकर बौंसी-हंसडीहा के मार्ग से चल कर सीधा बासुकिनाथ आते हैं और बाबा फौजदारीनाथ का जलाभिषेक करते हैं. 
 
साक्ष्य है कि यह परंपरा कई सौ सालों से चली अा रही है. मान्यता है कि सैंकडों साल पूर्व जब यह क्षेत्र घने वानों से आच्छादित था, तब यहां भीषण अकाल पड़ा था. तभी 'बसु' नामक भील को कंद-मूल के लिए जमीन खोदने के क्रम में 'जाग्रत शिवलिंग' मिला था. इसलिए शिव यहां बासुकिनाथ नाम में पूजे जाते हैं. बासुिकनाथ देवघर से करीब 45 किलोमीटर दूर दुमका जिले में अवस्थित है.

देवघर बाबा मंदिर का बाह्य अरघा लंबा होगा  
 
कांवरियों की सुविधा व भीड़ नियंत्रण के लिए इस बार बाबा मंदिर के निकास-द्वार पर तीन अरघा लगाये जायेंगे. इस बार अरघा की लंबाई भी अधिक होगी़
 
देवघर में यहां मिलेंगे एक्सेस कार्ड
 
- सुल्तानगंज से पैदल देवघर पहुंचने वाले कांवरियों को दुम्मा में.
- वाहनों से आने वाले कांवरियों को कोठिया व बीएड कॉलेज कैंपस में. 
 
होल्डिंग प्वाइंट
 
देवघर में भीड़ का दबाव कम करने के लिए कांवरिया पथ पर एक दर्जन से ज्यादा जगहों पर होल्डिंग प्वाइंट होंगे. जलार्पण के लिए भीड़ के अनुपात में कांवरियों को दुम्मा से आगे बढ़ाया जायेगा. 

देवघर-बासुकिनाथ मुफ्त बस सेवा
 
देवघर से बासुकिनाथ जाने वाले कांवरियों को फ्री बस सेवा मिलेगी. इसके लिए 20 बसों का इंतजाम है. बसें निर्धारित सीट भरने के बाद बासुकिनाथ के लिए रवाना होंगी.
 
बासुकिनाथ मंदिर और मेला क्षेत्र में सेल्फी प्वाइंट
 
मंदिर और मेला क्षेत्र में कई सेल्फी प्वाइंट बनाये गये हैं, जहां लोग तस्वीर खिंचा सकेंगे. साथ ही इस बार यहां भी सप्ताह में दो दिन अरघा सिस्टम से जलार्पण होगा.
 
महत्वपूर्ण दूरभाष संख्या
जिलाधिकारी भागलपुर 9473191381
वरीय पुलिस अधीक्षक भागलपुर 9431800003   
उप विकास आयुक्त भागलपुर 9431818374
सिविल सर्जन भागलपुर 9470003118
अपर समाहर्ता भागलपुर 9473191382
मंदिर दंडाधिकारी, देवघर9431414752
बैद्यनाथ मंदिर, देवघर 9431139339
नियत्रण कक्ष, देवघर 9234879226
उपायुक्त, देवघर 9801790728
पुलिस अधीक्षक, देवघर 9470591079
बासुकिनाथ मंदिर प्रभारी8709566080
अनुमंडल पदाधिकारी, दुमका 9431158011
एसडीपीओ, (बासुकिनाथ) जरमुंडी  8877204693
पुलिस इंस्पेक्टर  (बासुकिनाथ) जरमुंडी8102519424
कार्यपालक पदाधिकारी (बासुकिनाथ) जरमुंडी 9934584319
 
कांवरिया पथ

दूरी और पड़ाव

सुलतानगंज पहुंचने का रास्ता 
 
सुलतानगंज ट्रेन, सड़क तथा वायु मार्ग से पहुंचा जा सकता है. हवाई मार्ग से पहुंचने के लिए पटना और कोलकाता नजदीक एयरपोर्ट है. उसके बाद ट्रेन या बस से सुलतानगंज पहुंचा जा सकता है. प्राय: हर जगह से सुलतानगंज के लिए ट्रेनें आती हैं, जबकि सड़क मार्ग से भी अासानी से यहां पहुंचा जा सकता है. यहां से देवघर के लिए कांवर-यात्रा आरंभ होती है.
नियंत्रण कक्ष
भागलपुर जिला : सुल्तानगंज के कृष्णगढ़ स्थित सरकारी अस्पताल प्रांगण में मुख्य नियंत्रण कक्ष
नयी सीढ़ी घाट व जहाज घाट में मेला नियंत्रण कक्ष 
मुंगेर जिला : तारापुर व कमरांय, गोगाचक भुमरसार में एकीकृत नियंत्रण कक्ष. 
बांका जिला : कटोरिया और जिलेबिया मोड़.
 
अबरखा में टेंट सिटी  
 
कांवरिया पथ में अबरखा धर्मशाला के निकट बिहार राज्य पर्यटन विभाग द्वारा टेंट सिटी का निर्माण किया गया है. इसमें कांवरियों के विश्राम के लिए पांच सौ बेड लगे हैं. रोशनी, स्वच्छता, स्वास्थ्य उपचार, हेल्प सेंटर आदि की भी  व्यवस्था है. कांवरिया पथ में कई जगहों पर बेंच की व्यवस्था की गयी है, जहां कांवरिया आराम कर सकते हैं. भागलपुर जिले में 49 स्थायी व 25 अस्थायी  शौचालय बने हैं.
 
कांवरियों के लिए मोबाइल एप 
 
बिहार-झारखंड, दोनों राज्यों में श्रावणी मेले को लेकर एप बनाये गये हैं, जिसमें यात्रा मार्ग, जलार्पण के लिए कतार की लंबाई, कांवरियों को मिलने वाली सुविधाओं आदि की जानकारी अपडेट होती रहेगी.

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